दुष्यंत संग्रहालय में साहित्य और संस्कृति को समर्पित एक गरिमामयी आयोजन के अंतर्गत आज तीन पुस्तकों का सामूहिक विमोचन एवं विचार-विमर्श कार्यक्रम संपन्न हुआ। इस अवसर पर बाल-कविता संग्रह “चलो उजाले की और”(लेखिका डॉ. वंदना मिश्रा), गीत- संग्रह “गीत गाती धरा” (लेखिका डॉ. प्रतिभा द्विवेदी) और समीक्षा पुस्तक “लघुकथा कुछ कहती है” (लेखक मुज़फ़्फ़र इक़बाल सिद्दीक़ी) का लोकार्पण किया गया।
कार्यक्रम की अध्यक्षता बाल कल्याण एवं बाल साहित्य शोध केंद्र, भोपाल के निदेशक श्री महेश सक्सेना ने की। मुख्य अतिथि के रूप में मध्यप्रदेश शासन की साहित्य अकादमी के निदेशक श्री विकास दवे उपस्थित रहे। वरिष्ठ साहित्यकार श्री बलराम गुमास्ता ने विशिष्ट अतिथि के रूप में कार्यक्रम की गरिमा को और भी ऊँचाई प्रदान की।
तीनों पुस्तकों के विमोचन के बाद लेखकों ने अपनी पुस्तकों पर विचार व्यक्त करते हुए अपनी रचनाओं का पाठ किया। कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि श्री बलराम गुमास्ता ने तीनों पुस्तकों की रचनाओं पर प्रकाश डालते हुए उन्हें महत्वपूर्ण सृजन बताया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि डॉ. विकास दवे ने तीनों पुस्तकों के महत्व पर बात की। लोकार्पित किताबों के संदर्भ में उन्होंने कहा कि डॉ. प्रतिभा द्विवेदी शिक्षिका है ऐसे में उनके गीतों में उस तरह का शिल्प दिखाई देता है वही डॉ. वन्दना मिश्र की बाल कवितायें छ: खंडों में विभाजित है, इसकी जगह ये छे पुस्तकें हो सकती थी। डॉ. ने कहा कि सिद्दकी जी की समीक्षा की यह पुस्तक लघुकथाओं के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण किताब है।
इस आयोजन की अध्यक्षता कर रहे श्री महेश सक्सेना ने अपने उद्बोधन में कहा कि बच्चों के लिए कविताएँ, गीत या कहानी लिखना सबसे कठिन काम है। ऐसे में साहित्यकार के लिए महत्वपूर्ण हो जाता है कि वे ऐसे शब्दों का चयन करें जो बच्चों को समझ में भी आए और उनके लिए शिक्षाप्रद भी हो। उन्होंने तीनों रचनाकारों की पुस्तकों को महत्वपूर्ण बताते हुए सभी लेखकों को बधाई प्रेषित की।
कार्यक्रम का आयोजन आइसेक्ट पब्लिकेशन, वनमाली सृजनपीठ एवं स्कोप ग्लोबल स्किल्स यूनिवर्सिटी, भोपाल के संयुक्त तत्वावधान में किया गया। आयोजन की रूपरेखा में सृजनशीलता, सामाजिक चेतना और साहित्यिक संवाद का सुंदर समावेश देखने को मिला। स्वागत वक्तव्य आइसेक्ट प्रकाशन की प्रबंधक सुश्री ज्योति रघुवंशी द्वारा प्रस्तुत किया गया। कार्यक्रम का सफल संचालन वरिष्ठ प्रबंधक श्री महीप निगम ने किया।
इस अवसर पर साहित्यप्रेमियों, विद्यार्थियों, प्राध्यापकों की उपस्थिति विशेष रही। कार्यक्रम में साहित्यिक अभिव्यक्ति के विविध पक्षों पर सार्थक विमर्श हुआ, जिससे यह आयोजन केवल एक लोकार्पण न रहकर एक सजीव संवाद मंच में परिवर्तित हो गया।










