भोपाल। जल गंगा संवर्धन अभियान अंतर्गत मध्यप्रदेश जनजातीय संग्रहालय के सभागार में रविवार को कोरकू जनजाति के महान नायक, प्रकृति प्रेमी और वीर राजा भभूत सिंह के योगदान को वरिष्ठ रंगकर्मी राजीव सिंह ने अपने गीतों के माध्यम से प्रस्तुत किया। इस अवसर पर राजा भभूत सिंह को याद करते हुए बैतूल के उमर बारस्कर एवं साथियों द्वारा कोरकू जनजातीय गदली-थापटी नृत्य तथा शिवानी एवं जनजातीय कलाकारों द्वारा कोरकू जनजातीय चिल्लुड़ी नृत्य प्रस्तुत किया। इसके पूर्व संस्कृति संचालानालय के संचालक एन.पी. नामदेव, महाराजा विक्रमादित्य शोधपीठ के निदेशक श्रीराम तिवारी एवं मध्यप्रदेश जनजातीय संग्रहालय, भोपाल के क्यूरेटर अशोक मिश्रा ने कलाकारों का पुष्पगुच्छ देकर स्वागत किया। प्रथम प्रस्तुति कोरकू जनजातीय के राजा भभूत सिंह की वीरता, सुशासन और पर्यावरण पर केंद्रित थी। इस संगीतमय प्रस्तुति में गंगा, नर्मदा पर आधारित गीतों को राजीव सिंह ने अपने अंदाज में प्रस्तुत किया।
कोरकू जनजातीय नृत्य गदली थापाटी –
कोरकू नृत्य की वेशभूषा अत्यधिक सादगीयुक्त और सुरूचिपूर्ण होती है। पुरूष सफेद रंग पसंद करते हैं, सिर पर लाल पगड़ी और कलंगी पुरूष नर्तक खास तौर से लगाते हैं। स्त्रियाँ लाल, हरी, नीली, पीली रंग की किनारी वाली साड़ी पहनती है। स्त्री के एक हाथ में चिटकोला तथा दूसरे हाथ में रूमाल और पुरूषों के हाथ में घुंघरूमाला तथा पंछा होता है। कोरकू नृत्यों में ढोलक की प्रमुख भूमिका होती है। ढोलक की लय और ताल पर कोरकू हाथों और पैरों की विभिन्न मुद्राओं को बनाते हुए गोल घेरे में नृत्य करते हैं।
कोरकू जनजातीय नृत्य चिल्लुड़ी –
यह कुँआर के महीने में कुँवारी युवतियों द्वारा किया जाने वाला समूह नृत्य है। इस नृत्य में बारह से सोलह लड़कियाँ भाग लेती हैं। युवतियाँ एक दूसरे की भुजा पकड़कर वृत्ताकार में नाचती हैं। इस नृत्य में गाये जाने वाले गीतों को ‘चिल्लुड़ी सिरिंज’ कहते हैं। इस नृत्य में किसी भी वाद्य का उपयोग नहीं होता है।










